प्रोo पूनम टंडन
कुलपति

उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम द्वारा 1957 में स्थापित दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में स्थापित होने वाला पहला विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय ने अपनी लंबी यात्रा में लगातार अपने आदर्श वाक्य, "आ नो भद्राः क्रतवो यंतु विश्वः" (सभी दिशाओं से नेक विचार मेरे पास आएं) के अनुसार विविध विचारों, लोगों और विश्वासों को अपने शैक्षणिक जीवन में आत्मसात करके जीने के लिए लगातार प्रयासरत है। विश्वविद्यालय की भौगोलिक स्थिति 26.7480 डिग्री उत्तर (अक्षांश), 83.3812 डिग्री पूर्व (देशांतर) है। यह विश्वविद्यालय गोरखपुर शहर में स्थित है और इसे बुद्ध, कबीर और गुरु गोरक्षनाथ, बिस्मिल, हनुमान प्रसाद पोद्दार और गीता प्रेस की आध्यात्मिक, दार्शनिक, देशभक्ति और परोपकारी भावना विरासत में मिली है। 190.96 एकड़ में फैले, इसमें तीस विभागों से युक्त सात संकाय हैं, जिन्होंने अपनी स्थापना के बाद से पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार और नेपाल के लोगों को समग्र शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक आवासीय-सह-संबद्ध राज्य विश्वविद्यालय के रूप में, जिसका शैक्षणिक क्षेत्राधिकार पूर्वी उत्तर प्रदेश के तीन जिलों में फैला हुआ है, यह एक समृद्ध शैक्षणिक विरासत, शानदार पूर्व छात्रों, अनुभवी, योग्य और समर्पित संकाय सदस्यों, पारदर्शी और प्रभावी प्रशासनिक व्यवस्था, पुस्तकालय, पर्याप्त कैरियर विकास के अवसर, उन्नत अनुसंधान सुविधाएं और एक जीवंत और सुरक्षित परिसर के साथ विकास के पथ पर गतिमान है।

डॉo कुशलनाथ मिश्रा
उप- निदेशक

भगवान बुद्ध की उदात्त करूणा, महायोगी गुरू श्रीगोरक्षनाथ की तप-साधना, सन्त-प्रवर कबीर की युगान्तकारी वैचारिकी, द्वारा ही मुख्य रूप से विश्वविद्यालयीय परिक्षेत्र के लोकचित का निर्माण हुआ है। गोरखपुर शहर में नाथपंथ का सर्वोच्च अधिष्ठान- श्रीगोरक्षनाथ मंदिर-स्थित है जो महायोगी श्रीगोरक्षनाथ की तपोभूमि है और यही पर वे समाधिस्थ हुए। श्रीगोरक्षनाथ मंदिर को एक सिद्धपीठ होने की मान्यता के साथ-साथ आस्था एवं अर्चना के प्रमुख केन्द्र के रूप में ख्याति है। श्रीगोरक्षपीठ के पूज्य पीठाधीश्वरों ने समरस समाज के निर्माण में, हिन्दू-संस्कृति के पुनरूद्धार में अभूतपूर्व योगदान दिया है। गोरखपुर के बौद्धिक परिवेश में दीर्घकाल से यह अन्तर्भूत भाव प्रवाहमान रहा है कि नाथपंथ के दार्शनिक, सार्वभौमिक सिद्धांतों एवं अनुप्रयोगों को जन-मन तक संचारित करने के लिये एक अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन-केन्द्र की स्थापना हो। महायोगी गुरू श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ के स्थापना से यही भाव मूर्तरूप लिया है। उत्तर प्रदेश शासन के उच्च शिक्षा अनुभाग-4 के शासनादेश संख्या-1090/सत्तर-4-2018-106(4-शोधपीठ)/2018, दिनांक 06.08.2018 द्वारा माननीय राज्यपाल के द्वारा दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ की स्थापना की गयी। महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ की स्थापना का शिलान्यास गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज, माननीय मुख्यमंत्री के कर कमलों द्वारा 30 नवंबर 2018 को हुआ। शिलान्यास के इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष प्रो0 धीरेन्द्र पाल सिंह, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो0 विजय कृष्ण सिंह एवं पूर्व कुलपति प्रो0 राजेश सिंह का सानिध्य प्राप्त हुआ। 3 जनवरी 2023 को मोहन सिंह भवन से शोधपीठ विश्वविद्यालय के महाराणा प्रताप परिसर में निर्मित नए भवन में स्थानंतरित हुआ। इस नव निर्मित शोधपीठ का निर्माण उ०प्र० सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा किया गया। इस भवन में पुस्तकालय, संग्रहालय, संगोष्ठी एवं सम्मलेन कक्ष, दृश्य-श्रव्य कक्ष, प्रकाशन हेतु संगणक कक्ष, अतिथि गृह के साथ साथ शैक्षिक एवं शिक्षणेतर पदधारको के अतिरिक्त सामान्य प्रशासन कार्यालय की भी व्यवस्था है। महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ के इस नवीन भवन में 13 जनवरी 2023 को नैक पियर टीम का विश्विद्यालय के मूल्यांकन हेतु आगमन एवं निरीक्षण हो चुका है। इस नैक पियर टीम के मूल्यांकन में विश्वविद्यालय को A++ ग्रेड प्राप्त हुआ है। महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ की स्थापना का उद्देश्य यत्र-तत्र विकीर्ण मन्तव्यों एवं उपदेशों को समेकित कर विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करना है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में स्थापित यह शोध-संस्थान जिज्ञासुओं की तात्विक-चिन्तन में अभिवृद्धि के साथ-साथ सामाजिक समरसता का संदेश भी संचरित कर रहा है।

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