भारत वर्ष का प्राणतत्व हिन्दुधर्म में सन्निहित है और भारतीय लोकचित आध्यात्मिक है। प्राचीन चिन्तन प्रणाली दार्शनिक होते हुए भी पूर्णतः वैज्ञानिक है। प्राचीन भारतीय ऋषि एवं अध्येताओं के चिन्तन के विषय- वस्तु मुख्यतः प्रकृति और पुरूष है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति से प्रारम्भ कर सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवयवों के प्रति संवेदनशील विश्लेषण भारतीय चिन्तन की अमूल्य थाती है। दर्शन का विषय एवं उद्देश्य ब्रह्मांड की मूलसत्ता का अन्वेषण करना है। प्राचीन भारतीय मनीषियों ने इस सत्ता की खोज में अपने जीवन अर्पण किए है। भारतीय दर्शन में एक दर्शन-अद्वैतवाद-सर्वाधिक प्रभावकारी रहा हैं क्योंकि यह दर्शन अद्भूत योगेश्वर्य के धनी, प्रखर विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न आचार्य शंकर (आठवीं शती में प्रादूर्भूत) के भाष्यों से विकसित एवं स्थापित हुआ है। आचार्य शंकर ने अद्वैतवाद के तीनों प्रस्थानों- उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता- पर भाष्य लिखा है। ब्रह्मसूत्र पर आचार्य शंकर का शारीरिक भाष्य सर्वप्रसिद्ध प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है। आचार्य शंकर ने अद्वैतवाद-दर्शन को सर्वोत्कृष्ट प्रतिष्ठा प्रदान की है। जब बौद्धधर्म के अनुशीलक तात्रिकों और सिद्धों के चमत्कार एवं अभिचार बदनाम होने लगें तब आचार्य शंकर ने वैदिक सनातन धर्म की पुर्नस्थापना हेतु भारत वर्ष के चारों कोनों पर चार पीठों (पूर्व में गोवर्धनमठ, पश्चिम में शारदामठ, उत्तर में बदरिकाश्रम, दक्षिण में श्रृंगेरीमठ) का निर्माण कर हिन्दू धर्म व संस्कृति की अभूतपूर्व सेवा की है। पुनश्च वैदिक सनातन धर्म व संस्कृति बाह्य आडंबरों, तर्कहीन कर्मकाण्डों के भँवर-जाल में फस गया तब समाज, जाति-पात, उँच-नीच छुआछूत जैसी अमानवीय घृणित विकृतियों से आवद्ध हो गया। ऐतिहासिक दृष्टि से लगभग दसवीं शती में महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ के लोकोपयोगी उपदेशों के प्रभाव से समाज में समरसता का बीजारोपण हुआ। इन उपदेशों का ही मध्यकालीन संस्करण भारत वर्ष में भक्ति-आंदोलन है। लगभग सभी संत-महात्माओं (कबीर, गुरु नानक, जायसी, मलूकदास, संतरविदास आदि) के चिन्तन में गुरु श्रीगोरक्षनाथ का स्पष्ट प्रभाव दीख पड़ता है। हालाँकि आध्यात्मिक दृष्टि से गुरु श्रीगोरक्षनाथ शिवावतारी माने जाते हैं और वे सत्ययुग में पंजाब के पेशावर में, त्रेता में गोरखपुर में, द्वापर में द्वारका के हरमुज में तथा कलिकाल में काठियावाढ़ की गोरखमढ़ी में अवतरित हुए। यह भी लोक-विश्रुति है कि गोरक्षनाथ कलियुग में शेषनाग के स्वरूप में प्रकट हुए। नाथ-पंथ या नाथ सम्प्रदाय का प्रार्दुभाव यौगिक क्रियाओं के पुनरूद्वार के लिए हुआ। इस सम्प्रदाय के परम्परागत संस्थापक स्वयं आदिनाथ (भगवान शंकर) माने जाते है तथा इस पंथ के प्रथम मानव-गुरु श्रीमत्स्येन्द्रनाथ हैं। हठयोग प्रदीपिका के अनुसार-
हठविद्यां हि मत्स्येन्द्रनाथगोरक्षाद्या विजानते।।
नाथ-पंथ में नव-नाथ मुख्य कहे जाते है - गोरक्षनाथ, ज्वालेन्द्रनाथ, कारिणनाथ, गहिनीनाथ, चर्पटनाथ, रेवणनाथ, नागनाथ, भर्तृनाथ और गोपीचन्द्रनाथ। नाथपंथ की योगशास्त्र साधना-हठयोग-महर्षि पातंजलि द्वारा प्रवर्तित योग का प्रयोगात्मक निरूपण विकसित रूप है-
इसीलिए हठयोग को अभ्यासिक दर्शन (Practicing Philosophy) भी कहा जाता है। हठयोग प्रदीपिका में गुरु श्रीगोरक्षनाथ की गणना सिद्ध योगियों में की गयी है -
श्री आदिनाथ-मत्स्येन्द्र-शावरानन्द-भैरवाः।
चौरंगी-मीन-गोरक्ष-विरूपाक्ष-विलेशयाः।।
नाथ पंथियों में उर्ध्वरेता या अखंड ब्रह्मचारी होना सबसे उत्कृष्ट अवस्था होती है। इनका तात्विक सिद्धान्त है कि परमात्मा ‘केवल’ है तथा उसी परमात्मा तक पहुँचना ही मोक्ष या कैवल्य प्राप्त करना है। वर्तमान जीवन में ही यह अनुभूति हो जाय नाथ-पंथ का यही लक्ष्य है क्योंकि जीवन में ही जीवन-मुक्ति की राह ढूढ़ने में सहायता करना नाथ-गुरुओं का उपदेशामृत हैं नाथपंथी दैहिक काया को परमात्मा के घर सदृश्य मानते है इसीलिए काया को वर्तमान जीवन में ही मोक्षानुभूति कराने वाले यन्त्र के रूप में प्रतिष्ठित करते है। कैवल्य की प्राप्ति के लिए नाथपंथी कायाशोधन की प्रक्रिया को अपनाते है। कायाशोधन में नाथपंथी यम, नियम के साथ हठयोग के षटकर्म (नेति, धौति, वस्ति, नौलि, कपालभाति और त्राटक) को अपनाते है।
काशी की नागरी प्रचारिणी सभा की खोज में महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ द्वारा लिखित निम्न पुस्तकें वर्णित है - हठयोग, गोरक्षज्ञानामृत, गोरक्षकल्प, गोरक्षसहस्रनाम, योगबीज (सं...संस्कृत में), महाथमंजरी (सं...संस्कृति में), गोरक्षशतक सं...संस्कृत में), चतुरशीत्यासन (सं...संस्कृत में), योगचिन्तामणि सं...संस्कृत में), योग महिमा सं...संस्कृत में), योगमार्तण्ड (सं...संस्कृत में), योगसिद्धान्त पद्वति सं...संस्कृत में), विवेकमार्तण्ड सं...संस्कृत में), सिद्ध-सिद्धान्त पद्वति सं...संस्कृत में), गोरखबोध, दत्तगोरखसंवाद, गोरखनाथजी रापद, गोरखनाथ के स्फुटग्रन्थ, ज्ञान सिद्धान्त योग, ज्ञान विक्रम, योगेश्वरी साखी, नरवैबोध, बिरह-पुराण गोरखसार तथा ज्ञान तिलक।
महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ का अभिमत है कि निरंजन का ध्यान ही सर्वोपरि समर्पण है। अपनी रचना ‘ग्यान तिलक’ में निरंजन के साक्षात्कार पर प्रकाश डाला है -
अंजन माहिं निरंजन भट्या, तिलमुख भटया तेलं।
मूरति माहिं अमूरत परस्या, भरा निरंतरि षेलं।।
श्रीगोरक्षनाथ ने योग-विद्या को अपनी साधना से न केवल समृद्ध किया बल्कि भारतीय प्रायदीप के आध्यात्मिक-सामाजिक पुनजागरण का आधार भी बनाया। नाथपंथ को सिद्धमत, सिद्धमार्ग, योगमार्ग, योग-सम्प्रदाय, अवधूत-मत, अवधूत सम्प्रदाय आदि नाम से भी जाना जाता है। नाथ पंथियों ने योग को अनुभवजन्य धरातल दिया। श्रीगोरक्षनाथ जी द्वारा जलायी गयी अखंड धूनी आज भी प्रज्वलित है और इस अखंडदीप का प्रकाश क्रियायोग के महत्व वैश्विक आयाम दिया।
गुरु श्रीगोरक्षनाथ में अद्भूत एवं अपूर्व संगठनात्मक प्रज्ञा थी। साधु रहे या गृहस्थ महायोगी के निर्मम हथौड़े की चोट ने दोनों की कुरीतियों को चूर्ण कर डाला। उँच-नीच, छुआ-छूत, जात-पात जैसी प्रत्येक रूढ़ि पर चोट की। श्रीगोरक्षनाथ ने अपने समय में ऐसे वैचारिकी का लोक भाषा में संदेश दिया जो मध्ययुगीन भक्ति आंदोलन जैसे प्रभावशाली धार्मिक-सामाजिक क्रान्ति की नींव साबित हुई। हिन्दु-मुस्लिम एकता की प्रबलधारा के रूप में सूफी मत के नए संस्करण का उदय भी हुआ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मत व्यक्त किया है कि आदि शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित महापुरूष भारत वर्ष में नही हुआ। भक्ति आन्दोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन गोरखनाथ का योग-मार्ग ही था। भारत वर्ष की ऐसी कोई भाषा नहीं जिसमें गोरखनाथ से सम्बन्धित कहानियाँ न पायी जाती हो....... गोरखनाथ अपने युग के महान धर्म-नेता थे....... उन्होंने जिस धातु को छुआ वही सोना हो गया।
नाथपंथ में अनूठी परम्परा है- यहाँ शिष्य भी गुरु को राह दिखाते है- जाग मछन्दर गोरख आया- का निहितार्थ आज भी जन-मन में गुंजायमान है। श्रीगोरक्षपीठ की महंत-परम्परा गुरु-शिष्य की ऐसी परम्परा है जिसमें पिता-पुत्र जैसी महक है।
निष्कर्षतः हम यह कह सकते है कि साधकों के कब्जे वाले योग को आम जन तक पहुँचा दिया महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ ने। नर-नारी, अमीर-गरीब, सभी वर्गो, सभी जातियों, महलों एवं झोपड़ियों तक योग सर्वसमावेशी, सार्वभौमिक एवं सर्वोपयोगी रूप प्राप्त कर लिया। ‘योग’ अब सामाजिक जनांदोलन सदृश्य प्रतिष्ठित है। नाथपंथ योगियों का राजनीति में प्रवेश भी राजनीति के शुद्वीकरण के लिए हुआ। हिन्दु चेतना के पुनरूद्वार में वर्तमान गोरक्षपीठाश्वर परम पूज्य योगी आदित्यनाथ जी महाराज एवं माननीय मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश का अवदान कालजयी है।
महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ की स्थापना का उद्देश्य यत्र-तत्र विकीर्ण मन्तव्यों एवं उपदेशों को समेकित कर विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करना है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में स्थापित यह शोध-संस्थान जिज्ञासुओं की तात्विक-चिन्तन में अभिवृद्धि के साथ-साथ सामाजिक समरसता का संदेश भी संचरित करेगा। संक्षेपतः महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ के उद्देश्य एवं कार्य निम्नवत है -
शोध सम्बन्धी एवं लोकाभिमुख उद्देश्य एवं कार्य
- नाथ-पंथ के दर्शन एवं उसके अवदानों पर शोध करना।
- महायोगी श्रीगोरक्षनाथ प्रवर्तित योग के दार्शनिक एवं आयुर्विज्ञान सम्बन्धी पक्षों का विश्लेषण करना।
- नाथ-पंथ की दार्शनिक पृष्ठभूमि एवं व्यावहारिकता का आकलन करना।
- नाथ परम्परा के सामाजिक अवदान का आकलन एवं अनुप्रयोग करना।
- राष्ट्रीय पुनर्जागरण में नाथ-पंथ की भूमिका का अध्ययन करना।
- राष्ट्रीय आंदोलन में नाथ-पंथ की भूमिका का अध्ययन करना।
- वर्तमान युग में सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक नवजागरण में नाथ-पंथ की भूमिका का अध्ययन करना।
- नाथ-पंथ के विश्वकोष का निर्माण करना।
- नाथ-पंथ से सम्बन्धित साहित्य का प्रामाणिक विवरण तैयार करना।
- नाथ-पंथ से सम्बन्धित बाह्य शोध-अध्येताओं के प्रबन्धों का प्रकाशन करना।
- षड्मासिक पत्रिका का प्रकाशन करना।
- भक्ति आन्दोलन एवं नाथ-पंथ के अन्तःसम्बन्धों का समीक्षात्मक अध्ययन करना।
- भारत सहित विश्व भर में स्थापित नाथ-पीठों का अध्ययन एवं उनके अवदान का आकलन करना।
- भक्ति आंदोलन में नाथ-पंथ के योगदान का आकलन करना।
- नाथ-पंथ के योगियों की परम्परा के विकास को रेखांकित करना।
- नाथ-पंथ के अन्य दार्शनिक प्रस्थानों के साथ अन्तःसम्बन्धों का अध्ययन करना।
- वर्तमान वैश्विक समस्याओं के समाधान में नाथ-पंथ की भूमिका का अन्वेषण करना।
- मासिक, त्रैमासिक, षड्मासिक तथा वार्षिक संगोष्ठियों एवं कार्यशालाओं का आयोजन करना एवं शोध-कार्यो एवं निष्कर्षो का प्रकाशन करना।
- नाथ-पंथ पर आधारित Add-on डिप्लोमा पाठ्यक्रम आदि का संचालन करना।
- पी-एच.डी. उपाधि हेतु शोधार्थियों का प्रवेश प्रारम्भ करना।
- नाथ-पंथ से सम्बन्धित शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक कार्यानुरूप महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ द्वारा वार्षिक-राज्यस्तरीय तथा राष्ट्रीय पुरस्कारों की स्थापना करना।
- नाथ-पंथ से जुड़ी सामग्रियों के लिए संग्रहालय की स्थापना करना।
- महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ के उद्देश्यों की सम्पूर्ति के लिए सरकारी तथा स्वैच्छिक बाह्य संगठनों से आर्थिक सहयोग प्राप्त करना।
- भारत एवं विश्व में सहयोगार्थ महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोध-पीठों की स्थापना तथा संचालन करना।